दानलीला कवितांश

जतका दूध दही अउ लेवना।
जोर जोर के दुध हा जेवना।।
मोलहा खोपला चुकिया राखिन।
तउन ला जोरिन हैं सबझिन।।
दुहना टुकना बीच मढ़ाइन।
घर घर ले निकलिन रौताइन।।
एक जंवरिहा रहिन सबे ठिक।
दौरी में फांदे के लाइक।।
कोनो ढेंगी कोनो बुटरी।
चकरेट्ठी दीख जइसे पुतरी।।
एन जवानी उठती सबके।
पंद्रा सोला बीस बरिसि के।।
काजर आंजे अंलगा डारे।
मूड़ कोराये पाटी पारे।।
पांव रचाये बीरा खाये।
तरुवा में टिकली चटकाये।।
बड़का टेड़गा खोपा पारे।
गोंदा खोंचे गजरा डारे।।
पहिरे रंग रंग के गहना।
ठलहा कोनो अंग रहे ना।।
कोनो पैरी चूरा जोड़ा।
कोनो गठिया कोनो तोंड़ा।।
कोनों ला घुंघरू बस भावे।
छम छम छम छम बाजत जावें।।
खनर खनर चूरी बाजै।
खुल के ककनी हाथ विराजे।।
पहिरे बहुंटा और पछेला।
जेखर रहिस सौंख हे जेला।।
दोहा-
करधन कंवर पटा पहिर, रेंगत हाथी चाल।
जेमा ओरमत जात हे, मोती हीरा लाल ।।

पं.सुन्‍दर लाल शर्मा


(श्री राकेश तिवारी जी द्वारा सन् 1996 म प्रकाशित छत्‍तीसगढ़ी काव्‍य संग्रह ‘छत्‍तीसगढ़ के माटी चंदन’ ले साभार)

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